9 June 2015

दूर तक तलाशमें मेरे साथ चल पड़े वो इंतजार है तुं ,मुकुल दवे "चातक"


दूर  तक  तलाशमें मेरे साथ चल पड़े वो इंतजार है तुं ,
हर  मोड़पे  जिंदगीमे  रहनुमां  बने  वो  राजदार है तुं ,

तेरे   पैगाममें  मंजरे-इश्कमें  धुआँ  हसरतका  मिला ,
कोई  अंजाम  न हो  वो  ही  आगाज  की  पुकार है  तुं ,

कोशिश   हरचंद   यह   रहेगी   न   उजड़ेगा   घोंसला ,
बने  जो  शाखसे  टूटने  न  दे  वो  रहमतगुजार  है तुं ,

मोहब्बतके   सिलसिला का  निशाँ  मिटने  नहीं  देंगे ,
बनाती   है  दिलमें  नक़्शे-कदम  वो  रह्गुजार  है  तुं ,

बेताबी  बढ़ाती  है  तेरी  साँसोकी  महक  जजबातोमे ,
जब गुजरती है खलिशें मिटाती हो वो खुशगवार है तुं ,

मुकुल दवे "चातक"

 हसरत-इच्छा// रह्गुजार-सहयात्री
राजदार-ह्रदय की बात जाननेवाला//मंजरे-दृश्य//
आगाज-शरुआत//रहमतगुजार-दयालु//
खलिशें-चुभन//खुशगवार-सुख देने वाली


3 June 2015

कश्मकश राजसे मेरे घर आये रियायत भी हो गई ,मुकुल दवे "चातक "


कश्मकश   राजसे  मेरे  घर  आये   रियायत  भी  हो  गई ,
सुरूर ऐसा  रुस्वा  भी  ना  हुआ  और  इशरत  भी हो  गई ,

उसने  करीब  आके   इस  कदर  नजरे-करम  मुझसे  की ,
तिश्नगीका  नशा भी  ना  हुआ  और  उल्फत  भी  हो गई ,

मत   पूछ   उसका   अंदाज   दर्द   देके   चारागर   बनना ,
तड़पना  तड़पाना  भी ना  हुआ और सियासत  भी हो गई ,

दीवानगी   की   इंतहा   का   मेरा   खुदा    कुछ   और   है ,
तलबसे  खफा  भी  ना  हुआ  और  इज्जत   भी   हो   गई ,

बेताब   भी   है   और   इश्क   का   दावा   भी   नहीं  करते ,
गिला  शिकवा  भी  ना  हुआ  और  इनायत  भी   हो   गई ,

जैसे  मजार  पे  माथों  का  टेकना  उस  तरह  मुझे   छूना ,
दिया मंदिरमें जलाना भी ना हुआ और इबादत भी हो गई

मुकुल दवे "चातक "
कश्मकश-द्विधा //रियायत-नरम व्यवहार// रुस्वा-बदनामी/
इशरत-आनंद//नजरे-करम-कृपा दृष्टि//तिश्नगी-प्यास//
चारागर-उपचारक//इंतहा-पराकाष्टा//इनायत-कृपा// इबादत-पूजा