सफीना समन्दरमें डूबा नहीं किनारा न देख ,
जाके सहरामें डूबा देख तू , खुदको बेसहारा न देख,
यह यकीनन फितरत है रातकी सूरज लानेकी ,
सुबहकी रोशनी देख तू , अँधेरा दुबारा न देख ,
हर नगर भीड़ लगी है मरघट, मजार और बजारोमे ,
सिर्फ प्यास कम करके देख तू ,प्यासका फ़साना न देख ,
हर राह्पे हर मोड़ पर सवाल बदलते हुऐ देखे ,
जवाबोकी करवट देख तू , मोड़ पे ठिकाना न देख ,
आग उठी है कहाँसे वो तेरी बसकी बात नहीं ,
गंगा निकाली जाऐ देख तू , धुआँका आस्मां न देख ,
मुकुल दवे "चातक "
सफीना -नाव /फितरत -स्वभाव