मेरी नजरोका नूरे-दिदार बिगड़े की वो फ़साने कर बैठे है ,
की वो अपना हाल खुदसे अपने आपसे बेगाने कर बैठे है ,
यह क्या मंजर है की उनकी निगाहे-खमसी हो गई है ,
सोचता हूँ हैरतसे की वो हाल क्यूँ कतराने कर बैठे है ,
किस्मत सिर्फ यासो-मसरत के सिवा कुछ भी ही नहीं ,
मलाल ही ईस बातका की वो कितने ज़माने कर बैठे है ,
बुजाये तो भी कैसे उनकी जलाई हुई दो तरफसे चिनगारी ,
बढ़ती जा रही है आग क्यूँ मुझको दिवाने कर बैठे है ,
कैसी यह कजा-ऐ-उल्फत है , बदले बदले से चहेरे हैं
ख़ामोशी लबों की बता रही है की वो आशियाँने कर बैठे है ,
मुकुल द्वे "चातक"
निगाहे-खमसी-नीची नजर // यासो-मसरत-आशा -निराशा //
मलाल-दुःख/अफ़सोस //कजा- मोत