12 January 2015

मेरी नजरोका नूरे-दिदार बिगड़े की वो फ़साने कर बैठे है ,मुकुल द्वे "चातक"


मेरी नजरोका नूरे-दिदार बिगड़े की वो फ़साने कर  बैठे है ,
की  वो अपना हाल खुदसे अपने आपसे बेगाने कर  बैठे है ,

यह  क्या  मंजर  है  की  उनकी निगाहे-खमसी हो  गई  है ,
सोचता   हूँ  हैरतसे  की  वो हाल  क्यूँ कतराने कर  बैठे है ,

किस्मत  सिर्फ  यासो-मसरत  के सिवा कुछ भी  ही  नहीं ,
मलाल  ही  ईस  बातका की  वो कितने ज़माने कर बैठे  है ,

बुजाये तो भी कैसे उनकी जलाई हुई दो तरफसे चिनगारी ,
बढ़ती  जा  रही  है आग  क्यूँ  मुझको  दिवाने  कर बैठे  है ,

कैसी  यह   कजा-ऐ-उल्फत  है , बदले  बदले  से  चहेरे  हैं
ख़ामोशी लबों की बता रही है की वो आशियाँने कर बैठे  है ,

मुकुल द्वे "चातक"

निगाहे-खमसी-नीची नजर //  यासो-मसरत-आशा -निराशा //
मलाल-दुःख/अफ़सोस //कजा- मोत


4 January 2015


आग    लगेगी     धुँआँ     उठेगा ,   आग    बुजानी   ही   नहीं ,                       
कैसी   कैफियतकी  आग   जिस   धुँआँकी  कहानी   ही   नहीं ,

इंशा-ऐ-अन्दांजमें       देखते    है     दीदार    आइनेमे       वो ,        
आशिकी      मुहब्बत    ऐसी     नफरतकी    रवानी  ही   नही ,

सुनेहरा      सूरज      ढलने    से      शबे-महेताब    निकलेगा ,
शबनमे     रात    ऐसी   जिस    सुबहकी   रोशनी   ही    नहीं ,

तेरी    यह    निगाहे    है,   की    निगाहे-  पैमाना   हयात   है ,
मै    पिए   जा   रहा   हूँ ,   मैकदामें    आनी-जानी   ही   नहीं ,

तेरा  अक्स मुझमे  है , जलाने  से  पहले  दिल निकाला जाए ,
जल न जाए उनका दिल , वो मेरे जिस्ममें अजनबी  ही  नहीं ,

खुदा     करें   तेरे    गेंसुओ   के    सायेमें   मुकामे-सहबा   हो ,
खुदा-ऐ-मोहब्बत के मुकाम के सिवा कोई पयगामी  ही  नहीं

मुकुल दवे "चातक"

कैफियत=हाल /शबे-महेताब=चाँद /हयात=जिन्दगी /अक्स=प्रेम
सहबा=शराब /पयगामी=संदेश