दुआ मांगी पत्थरसे मगर दुआमें पत्थर नहीं देखा ,
इबादत की है तेरी तेरे जैसा बेजूबाँ उम्रभर नहीं देखा ,
कोई दवा या इलाज दुनियाके गमे दर्दका नहीं मिला
सजाते हो तुम धड़कने साजपे तेरे जैसा चारागर नहीं देखा ,
ख्वाहिशो में कभी तेरे शहेरकी गलीसे गुजरे हुऐ थे ,
लगता है ऐसा की मुहब्बतमें कमीसी है तेरा घर नहीं देखा ,
वक्तके हालातमें तेरे कुचेमें दरदरसा भटका हुआ हूँ ,
आजतक तुमने मेरी दिल्ल्गी या जख्मे जिगर नहीं देखा ,
चाँद सूरज, शाख पत्तों मौसम वक्तके साथ ढलने में है ,
खफा हूँ जाके बैठता हूँ मजार पर उनको पेशे नजर नहीं देखा ,
मुकुल द्वे "चातक"
चारागर =उपचारक / पेशे नजर=नजर के सामने