31 March 2015

दुआ मांगी पत्थरसे मगर दुआमे पत्थर नहीं देखा ,मुकुल द्वे "चातक"


दुआ   मांगी   पत्थरसे   मगर   दुआमें   पत्थर   नहीं   देखा ,
इबादत  की   है  तेरी  तेरे  जैसा  बेजूबाँ   उम्रभर  नहीं  देखा ,

कोई   दवा  या   इलाज  दुनियाके  गमे  दर्दका  नहीं   मिला
सजाते हो तुम धड़कने साजपे तेरे  जैसा चारागर नहीं  देखा ,

ख्वाहिशो   में   कभी   तेरे   शहेरकी  गलीसे  गुजरे   हुऐ   थे ,
लगता  है  ऐसा की  मुहब्बतमें कमीसी है तेरा घर नहीं देखा ,

वक्तके   हालातमें   तेरे   कुचेमें   दरदरसा  भटका  हुआ   हूँ ,
आजतक  तुमने मेरी  दिल्ल्गी  या  जख्मे जिगर नहीं  देखा ,

चाँद  सूरज, शाख  पत्तों  मौसम वक्तके  साथ  ढलने  में  है ,
खफा हूँ जाके बैठता हूँ मजार पर उनको पेशे नजर नहीं देखा ,

मुकुल द्वे "चातक"

चारागर =उपचारक / पेशे नजर=नजर के सामने





22 March 2015

यूँ तुमको चाहनेसे सभीको चाहने लगे ,मुकुल दवे "चातक"


यूँ    तुमको   चाहनेसे   सभीको    चाहने   लगे ,
अजनबी   मिले   उनमें    तुझको   ढूँढने   लगे ,

मैं    जैसे   बढ़ाता   हूँ   तुझसे  ईशका    मर्तबा ,
ये   भी  इत्तेफाक  थे   सारे  रिश्ते  डसने  लगे ,

यूँ  भी  तुम  मेरी  तरफ  बेरुखी  न  किया करो ,
मेरे   अरमानके   रोशनीके   दिए  बुझने   लगे ,

ऐसे  भी तुम बहते  हुए जज्जबातको  बहने दो ,
हाथ  मेरा  थामकर  रिश्तेसे  क्यूँ मुकरने  लगे ,

इश्कको तौला है तराजूमें मौतको बदनाम किया ,
वो  इश्क के  दुश्मन है  मरघटपे  जां फूंकने लगे

मुकुल दवे "चातक"


20 March 2015

कहाँ फिकर धूँधली धूँआकी वो अक्सर भीतर मिलता है ,मुकुल दवे "चातक"


कहाँ  फिकर  धूँधली  धूँआका वो अक्सर भीतर  मिलता  है ,
ढूँढ़ता रहेता हूँ कहाँ कहाँ वो आजमा कर  भीतर  मिलता  है ,

कभी   ख्वाबो   में  आ   जाए  खुद  यक़ीनन  शब   ही  सही ,
ज्यादा जानता मुझको मेरे से उसका डगर भीतर मिलता है

उसको   मैं   सजदे   में   दस्ते-दुआ   उठाके   मांगता   नहीँ ,
साँसकी  रवानी  में  हर  लम्हा  उभर  कर भीतर  मिलता है ,

वो   मन्दिर   मस्जिद   गुरूદ્વાર  चर्च  में  जाता  कभी  नहीँ ,
आज   कल  पयगामे  अजूबा   बनकर  भीतर   मिलता   है ,

शौके-सफर   का   सलीका   तुं   खुद   साँसो   में   बसा   ले ,
ये  आँसु  फुरकत  आहे  हसरत सजाकर भीतर  मिलता  है

मुकुल दवे "चातक"
दस्ते-दुआ-दुआ का हाथ , फुरकत-विरह