29 April 2015

मैं तेरे मैखानामे आया होता ,जाम पीलानेका दौर कुछ ओर होता ,मुकुल दवे "चातक'


मैं  तेरे  मैखानामें  आया होता ,जाम पीलानेका  दौर कुछ  ओर  होता ,
तु  पीलाता  मैं पीता तेरे  हसीन नजारे चुरानेका  दौर कुछ ओर  होता ,

नकाब   चहेरेसे   तु    उतार  दे ,  ऐतबारकी  दिवार   हिलने  लगी   है ,
प्यार ही ऐतबारकी  बुनियाद  है ,उन्हें हिलानेका दौर कुछ ओर  होता ,

शब    हो    या    सहर ,   शमाए    बुजाने    से    कोई    फायदा   नहीं
परवाने जलके खाक हो गये  मुहब्बत निभानेका  दौर कुछ ओर होता ,

बहुत    कड़ा    है    सफर    अपने    रहनुमाको    साथ    लेके    चलो ,
नशेमें  हूँ  मैं  होश  नहीं  तुम्हे  रंजिशें जतानेका  दौर कुछ  ओर होता ,

भाग  किधर  रहा  है तू  नंगे शहरमे जबाँ  बेचनी होगी तुम्हें जमीरभी ,
हर  रोज तिश्नगी होगी यहाँ तक़दीर आजमानेका दौर कुछ ओर होता

मुकुल दवे "चातक'
शब-रात /  रहनुमा-मार्गदर्शक / तिश्नगी-प्यास

24 April 2015

पल भरके लिए लगा की कोई अपना पुकारता हुआ होगा ,मुकुल दवे "चातक"


पल  भरके  लिए लगा  की  कोई  अपना  पुकारता हुआ  होगा ,
मगर   वो   अपना   नहीँ   था ,  आपको   धोखा   हुआ   होगा ,

सजा    मिली    है    मेरे   गुनाहसे   बढ़कर   वो   अहसास   है ,
मशहूर   खुदको   करने   मुझे  बाजारमें  उछाला  हुआ   होगा ,

इस    तालाबका   पानी   बदल   दो    वकत   बदल   गया   है ,
वो  मछलियाँको   किटियों ने चारा  बनाकर  खाया हुआ होगा

निकली  चीख  तो  उनके  घरकी  दहलीज  तक   ठहरी  होगी ,
शहर की  भीड़ भाड़  के  शोरसे  वो  खुदको  ढूँढता  हुआ  होगा ,

शमा पे परिन्दे जलनेसे रोशनीके उजाले कम नहीँ हुआ करते ,
शहरमें  मशाले  जली  हुई  है  बेवफाइका  हादसा   हुआ  होगा ,

भूख  से  सब्र  कर   धनी थरथरा ने से रोटियाँ  उछाल रहा   है ,
भूखेके  हाथमें  मशाल  है  धनी  ने  हंगामा  देखा   हुआ  होगा ,

मुकुल दवे "चातक"

13 April 2015

अश्कके सैलाबमें जज्बातकी डूबी कश्तीको किनारे लायेंगें,मुकुल दवे "चातक"


अश्कके  सैलाबमें  जज्बातकी डूबी कश्तीको किनारे लायेंगें,
आँखोंमें   फिरसे   जिंदगीमें  हसीन  ख़्वाब  हमारे  सजायेंगें,

तेरे   हाथोंकी   लक़ीरोंमे   मेरा   नाम   हो   वो   जरूरी  नहीं ,
मेरा   प्यार   खुदाकी   लक़ीरोंसे  तुम  तक मोड़ सारे लायेंगें,

सिनेमें   जलन   आँखोंमें  नमी   जब   तलक   जली  हुई  है ,
तेरे   सिनेमे   लुटे   ख़्वाबके   गमका   बोझ उतारे   जायेंगें,

युँ मत रख दर्दे जिगर आखिर अलविदाका सफर नहीं  होगा ,
कारवाँमें चहेरे होगें दिलसे तेरे चहेरेके  नहीं नजारे मिंटायेंगें,

युँ  पकड़  ले  हाथ  मेरा  बहुत  भीड़  लगी है जमानेके मेलेमें ,
जख्मके    मरहम   बनेगे   तेरी   सीरतमेँ    बहारे   नवाजेंगें,

एक   निगाहे   करमसे   हमने   तुम्हारी  कायनात   पाई   है ,
बस यु  छेड़ते रहो हसीन दिलके  तार  हम  मलहारे सुनायेंगें,


मुकुल दवे "चातक"
 सीरत-सौजन्य






8 April 2015

मरा नहीं वो जलाया गया खुदापे इल्जाम बताया जा रहा है ,मुकुल द्वे "चातक"


मरा  नहीं  वो जलाया गया खुदापे  इल्जाम बताया  जा  रहा  है ,
जिस्मका   बेखबर  धूंआ का   अंजाम    बताया   जा   रहा     है ,      

भूंखी   नंगी   बस्तीके  आँगनमे   कभी   चूल्हे   जलते  नहीं  है ,
उनकी आहट,आस,तमन्ना आँसु  इन्तिक़ाम बताया जा  रहा है ,

तबाही   की    चीख    कभी    बेजबान    जहानमें    नहीं  होगी ,
जख्म जमीं  खामोश  है वह  गवाह  पयगाम बताया जा  रहा है ,

शोरसा    उठा    है    जहनमे    लब     बेबसीमें   सी    लिए    है ,
तमाशा  जुल्मका  बढ़ा  है  उनको  मकाम  बताया  जा  रहा   है ,

सितमगरकी     साज़िशें    बस  युँ  ही     बुलंद     हो    गई    है ,
आदमीको     भटका    हुआ     गुलाम    बताया    जा    रहा   है ,

मुकुल द्वे "चातक"
इल्जाम-तोहमत // इन्तिक़ाम-प्रतिशोध //पयगाम-संदेश