30 September 2015

सजधजसे जब जब वो गुलशनसे गुजरते है ,मुकुल दवे "चातक"


सजधजसे    जब    जब    वो   गुलशनसे  गुजरते  है ,
फ़स्ले-गुलके   दामनमें    प्यासे   भँवरे    सँवरते   है ,

रुखसे  महजबीं  तुम  नकाब  जब  जब  उठाती    हो
तेरी  प्यास , रुसवाईमें  जिन्दगी के सागर  छलते है ,

कभी   वो  साकी , तबीब  और  अजनबी    बनते    है ,
रिश्ता  क्या मेरा   दुश्मन  या दोस्तका क्या चाहते है ,

चिराग उम्मीदोंके  मेरे  दिलमें  बार  बार  जलाते  हो
चाँदका  चहेरा  रखते  हो ,बादलकी  तरह  बदलते  है  ,

इश्क मजबूर सही "चातक "दिलके साथ चलता नहीं ,
नवाज़िशें  रहेगी  मिटाओ  या सँवारो  तुम्हे चाहते है

मुकुल दवे "चातक"

फ़स्ले-गुल-फूलो का मौसम //महजबीं-चन्द्रमुखी //
सागर-शराब का जाम //नवाज़िशें-कृपा

26 September 2015

इतना भी तुम नक़ाबमें रहा न करो ,मुकुल दवे "चातक "


इतना    भी    तुम    नक़ाबमें    रहा    न   करो ,
हाँ    न    कह   सको    तो    दूर    रहा  न  करो ,

मिला  करोगें आँखो से   तो  भी  तुमसे  चाहेंगें ,
कागज पर लफ्ज लिख कर मिटा दिया न करो ,

देखोगे     गौर से    आईनेमें     खुदको   पढ़कर ,
तुम्हारा     अपना    तुमसे    जुदा      न    करो ,

मुझे   उसके   प्यारमेँ    गिरफतार    होने    दो ,
मुझसे प्यार नफरत का इजहार  किया  न करो ,

खामोश  न  रहो, गिला  शिकवा हो  तो कह  दो ,
बसाते  हो  नजरोमेँ  अहसासको  कहा  न  करो ,

मुझको तू अपना बना या न बना तेरी जुस्तजू ,
प्यार   दिखता   है  आँखोंमे   खोया   न    करो ,

मुकुल दवे "चातक "

24 September 2015

समंदरको बाहुमें लेनेसे साजन किनारा नहीं मिलता ,मुकुल दवे "चातक"



समंदरको   बाहुमें   लेनेसे   साजन   किनारा   नहीं    मिलता ,
रुखसारपे   बिखरी   जुल्फके   साएमें   गुजारा  नहीं   मिलता ,

बहुत   कड़ा   है   सफर    उम्रभरका ,एक पलमे  नहीं  गुजरता ,
भूख प्यासकी दुनियामें इश्कका  उम्रभर सहारा  नहीँ  मिलता ,

चाहत  ,नफरत   , जुर्म    और    गुनाहके   मारे   यह    जहाँमें,
कोईभी   आशियानामें  चिराग़े-सहरका नजारा  नहीं   मिलता ,

जुस्तजू    है    घर    बनानेकी   मगर  कितनी   दीवारें  उठेगी
उठके नहीं पहुँचे महलों तक  साथ देने तुम्हारा  नही   मिलता ,

दिलमे  "चातक"  ईक आरजू-ऐ -दीवानगीकी लहरसी उठी है
मगर    बेजुबान  जिंदगीका   राजदां   ईशारा   नही   मिलता ,


मुकुल दवे "चातक"
रुखसार-गाल//चिराग़े-सहर-सुबह का चिराग //राजदां-भेदी

21 September 2015

पी गए मदिरा पीते पीते आदमी फ़साना हो जाता है ,मुकुल दवे "चातक"


पी   गए   मदिरा   पीते   पीते   आदमी  फ़साना  हो  जाता  है ,
 इंसाको  नशेमें बदलते     देखा  नहीं, बुतखाना   हो  जाता  है ,

रहम   है  खुदाका   मयके  दमसे  पिघलती  है   बोझल   रातें ,
आदमी  ही आदमी  नहीँ रहता हकीकतमें  आईना हो जाता है ,

शाम  ढलते   ही   पीते  है   चाहतका  एक  मीठा  दर्द  जगाने ,
जब  कोई  इश्कका  दम तोड़ता है  मयका पैमाना हो जाता है ,

तुमने अगर जुल्फ  लहराई होती सावनका  महीना आ जाता ,
पी  लेते  है  इस  बहाने , नशेमें   जीनेका  बहाना  हो जाता  है ,

अगर  तुमने  अपनी  सुरूर  आँखोंसे  सुराही  छलकाई   होती ,
इश  बहाने  समां  बांध  लेते  है दिया दर्द  बेगाना  हो जाता है

मुकुल दवे "चातक"
फ़साना-कहानी/बुतखाना-मंदिर/ मय-शराब/पैमाना-प्याला ,


18 September 2015

तू मेरे नफ़्स में हो फिरभी मुझे जलाया क्यों है ,मुकुल दवे "चातक"


तू    मेरे    नफ़्समें   हो   फिरभी    मुझे  जलाया  क्यों  है ,
में   सदियोंसे  धूआँ   हूँ   फिरभी   मुझे   सजाया  क्यों  है

एसा   क्यों   लगता   है    मेरे    सारे   मोहरे    पिट    गए ,
रगों पे  जमा   खून   उसे   उबालके   पिघलाया   क्यों   है ,

रूह  को  खीँचके  कालने  मेरे  जिस्मकी  खोल  उतार  दी ,
दुनियाने  चिराग जलाके अपने आपको समजाया क्यो है,

वो  शख्स  जिसको  आपने  चूमा और गलेसे लगाया  था ,
आज  दास्तानों  के दिलचस्म  मोड़  पर  सुलाया क्यों  है ,

"चातक" लोगोंने जिस्म और जॉन टटोल कर देख लिया ,
जिसने  मुझे  रिश्तोमें  पिरोयां  आज  बिखराया  क्यों  है ,

मुकुल दवे "चातक"
नफ़्स=साँस/ रूह=आत्मा

11 September 2015

जिक्र आपका अंजुमनमें शायरीकी तरह बारबार हुए है ,मुकुल दवे "चातक"


जिक्र आपका  अंजुमनमें  शायरीकी  तरह बारबार हुए है ,
इश कदर  तुम्हारे  इश्कमें  तसव्वुरके  अशआर   हुए   है ,

गुलोंकी    वादियोमे    आरजू    भरे    कांटोके   साये    है ,
उन्ही    सायेके    तले    तुमसे    फुलोंके    वार   हुए    है ,

मेरे   हाथोंकी   लकीरेमें   तेरा   नाम   चमकता   सुनासा ,
खुदाभी  बेरहम  नहीं  जुग्नू  भी  अँधेरेमें  निसार  हुए  है ,

तुझसे  बिछड़े  जैसे  चलता  है  साथ  तेरे शहेरका रास्ता ,
रंजिशें सही गुजरे तेरे कुचेसे यादका मंझर निखार हुए है ,

मेरी   बे-जूंबा   महोब्बतसे   भले   ही   हो आप   ग़ाफ़िल ,
होंटोंकी  आपकी गहरी मुस्कानमें प्यारका इकरार हुए है ,

मुकुल दवे "चातक"
अंजुमन-મહેફિલ  अशआर-શેર तसव्वुर-કલ્પના 
जुग्नू-આગિયા