26 December 2014

लिपटी हुई तितलियाँ गुलसे तअल्लुक़ करती हो ,मुकुल दवे "चातक"


लिपटी     हुई    तितलियाँ    गुलसे   तअल्लुक़     करती    है ,
गुलकी   पोशीदा-महोब्बतको ,इस  कदर  रुसवाईयाँ  न  करो ,

युँ ही  प्यार करनेवाले  फस्ले-गुलसे महोब्बत  किया करते  है ,
गुलशनमें   फैली  लताफत   हवा,  इस कदर लुटाया  न   करो ,

माना   मैने    ज़माने   ने    दिये    जख्मोसे   सताये   हुए  , है ,
जो    अहसासे   जख्मे-दर्द   है,   इस   कदर   बढ़ाया   न   करो ,

चहका     करे    परिन्दे      खुदकी     आजादीके     आस्मानमें ,
वफाका   नाम  लेके   शमाको,  इस   कदर  जलाया   न    करो ,

सितमरवॉ  साकी   प्यासी  नजरोसे  जामको  क्यूँ  टकराते   है ,
बेताबी    बहकी   हुई   प्यासको   ,इस   कदर  बढ़ाया  न   करो,

मै ने     माना     उल्फत     एक    जलता    हुआ     चिराग    है ,
युँ    ही  बेवफाका  नाम   लेके,  इस   कदर   उछाला   न    करो ,

नवाजिश   है   की   दिलो-जानसे   महोब्बत  किया   करते    है ,
उल्फ़ते-हयात नाम  है खुदाका,इस कदर दामन छुड़ाया न करो ,

ऐसे   भी   महोब्बतमें   सिलसिला-ऐ-ख्वाहिश   कम   होती  है,
मिले न मिले दुनिया फानी है ,इस कदर फासला बढ़ाया न करो,

मुकुल दवे "चातक"

पोशीदा-छानी// फस्ले-गुलसे-वसंतऋतु// लताफत-माधुर्य//
//उल्फ़ते-हयात-प्रेमका जीवन//नवाजिश-कृपा

23 December 2014

कई मुदतोसे वो सोया नहीं ,ठिकानेका बहाना चाहिए ,मुकुल दवे "चातक"


कई   मुदतोसे   वो   सोया   नहीं ,  ठिकानेका  बहाना चाहिए ,
खुद   बदनाम   नहीं   होती  मोत , साजिशेका बहाना  चहिए ,

रूश्वा     हो     गया    वो ,     रूश्वाकी    तुमे    बहुत   चाहत
तुमे     मिलनके   वास्ते ,   दस्ते -जुनूनेका   बहाना   चाहिए ,

आशिकी  अदा, दीवानापन,  वो   यादे   एक  सफर  ही   सही ,
नाखुदा    को    खुदा    बनाया ,  ढूँढनेका    बहाना    चाहिए ,

दूर  तक  फासला करके बेठे वो ,खफा हुए है किसे गिला करू ,
उन्हें  मुद्तोसे  मना  रहा हूँ ,  साजे-ह्यातेका  बहाना  चाहिए ,

तुम कहा  गये, हवा हो गये,मुझे कसम है तेरी कुछ पता नहीं ,
खुदा तुमे खुदाईका  वास्ता, वादा-ए-वस्लेका  बहाना  चाहिए ,

तुमे    माँगनेके   लिए   उठे   है  मेरे  दो   हाथ   दुआके   लिए,
देखेगें हम मिलता है मांगनेसे ,चश्मे-जमीरका बहाना चाहिए ,

मुकुल दवे  "चातक"
चश्मे-जमीर=अंतरात्मा की आंख
दस्ते -जुनूने=पागलपन का हाथ// साजे-ह्याते=जीवनका वाध,
मन,हृदय// वादा-ए-वस्ले=मिलनका वादा,आस//

22 December 2014

मैं समंदर ठहरावकी तरहा ,तुम सरिता कलकल, मुकुल दवे "चातक"


मैं    समंदर  ठहरावकी  तरहा ,   तुम   सरिता    कलकल,
ऐसे   बहावको   देख ,   प्यारको   कोई   अंजाम    ना    दे    ,

हर   नफसमे  हो  तुम , ख्वाब    ऐसे   टूटने   मत    देना,
ऐसे   मिलते   रहेगें  युगो  तक ,   कोई   मकाम   ना   दे,

निस्तब्ध  लहर   मेरी  महोब्बतकी  तल्ख   हकीकत    है ,
आती  हो रुमज़ूम  गोश -ए -तनहाईमेँ  कोई  नाम  ना  दे ,

अनगिनत  भीड़ छोड़के रिन्द, किनारे -आगोशमें आते है ,
लड़खड़ाके बदनाम करते है,उल्फतको कोई इल्ज़ाम ना दे,

मुझे  मिलनेसे  पहले  बहते  बहते  तेरी  इबादत  होती  है ,
रोशन  तुम  कितने   हो  आते  हो , कोई  एहतराम  ना  दे ,

नफस=सोंस//तल्ख=कड़वी//रिन्द=शराबी//किनारे-आगोश=
किनारे के गोदमे// एहतराम=सन्मान

मुकुल दवे "चातक"