कश्मकश राजसे मेरे घर आये रियायत भी हो गई ,
सुरूर ऐसा रुस्वा भी ना हुआ और इशरत भी हो गई ,
उसने करीब आके इस कदर नजरे-करम मुझसे की ,
तिश्नगीका नशा भी ना हुआ और उल्फत भी हो गई ,
मत पूछ उसका अंदाज दर्द देके चारागर बनना ,
तड़पना तड़पाना भी ना हुआ और सियासत भी हो गई ,
दीवानगी की इंतहा का मेरा खुदा कुछ और है ,
तलबसे खफा भी ना हुआ और इज्जत भी हो गई ,
बेताब भी है और इश्क का दावा भी नहीं करते ,
गिला शिकवा भी ना हुआ और इनायत भी हो गई ,
जैसे मजार पे माथों का टेकना उस तरह मुझे छूना ,
दिया मंदिरमें जलाना भी ना हुआ और इबादत भी हो गई
मुकुल दवे "चातक "
कश्मकश-द्विधा //रियायत-नरम व्यवहार// रुस्वा-बदनामी/
इशरत-आनंद//नजरे-करम-कृपा दृष्टि//तिश्नगी-प्यास//
चारागर-उपचारक//इंतहा-पराकाष्टा//इनायत-कृपा// इबादत-पूजा
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