3 June 2015

कश्मकश राजसे मेरे घर आये रियायत भी हो गई ,मुकुल दवे "चातक "


कश्मकश   राजसे  मेरे  घर  आये   रियायत  भी  हो  गई ,
सुरूर ऐसा  रुस्वा  भी  ना  हुआ  और  इशरत  भी हो  गई ,

उसने  करीब  आके   इस  कदर  नजरे-करम  मुझसे  की ,
तिश्नगीका  नशा भी  ना  हुआ  और  उल्फत  भी  हो गई ,

मत   पूछ   उसका   अंदाज   दर्द   देके   चारागर   बनना ,
तड़पना  तड़पाना  भी ना  हुआ और सियासत  भी हो गई ,

दीवानगी   की   इंतहा   का   मेरा   खुदा    कुछ   और   है ,
तलबसे  खफा  भी  ना  हुआ  और  इज्जत   भी   हो   गई ,

बेताब   भी   है   और   इश्क   का   दावा   भी   नहीं  करते ,
गिला  शिकवा  भी  ना  हुआ  और  इनायत  भी   हो   गई ,

जैसे  मजार  पे  माथों  का  टेकना  उस  तरह  मुझे   छूना ,
दिया मंदिरमें जलाना भी ना हुआ और इबादत भी हो गई

मुकुल दवे "चातक "
कश्मकश-द्विधा //रियायत-नरम व्यवहार// रुस्वा-बदनामी/
इशरत-आनंद//नजरे-करम-कृपा दृष्टि//तिश्नगी-प्यास//
चारागर-उपचारक//इंतहा-पराकाष्टा//इनायत-कृपा// इबादत-पूजा



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