28 May 2015

सफीना समन्दरमें नहीं डूबा किनारा न देख ,मुकुल दवे "चातक "


सफीना    समन्दरमें   डूबा    नहीं    किनारा    न    देख ,
जाके  सहरामें   डूबा   देख  तू , खुदको  बेसहारा न  देख,

यह    यकीनन   फितरत   है   रातकी   सूरज    लानेकी ,
सुबहकी    रोशनी    देख   तू ,  अँधेरा   दुबारा   न   देख ,

हर  नगर  भीड़  लगी  है  मरघट, मजार  और  बजारोमे ,
सिर्फ प्यास कम करके देख तू ,प्यासका फ़साना न देख ,

हर   राह्पे   हर   मोड़   पर   सवाल   बदलते   हुऐ   देखे ,
जवाबोकी   करवट  देख  तू ,  मोड़  पे  ठिकाना  न  देख ,

आग   उठी   है   कहाँसे   वो   तेरी   बसकी   बात    नहीं ,
गंगा  निकाली  जाऐ  देख  तू , धुआँका  आस्मां  न  देख ,

मुकुल दवे "चातक "
सफीना -नाव /फितरत -स्वभाव


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