24 May 2015

हर मोड़ पर अजनबी शख्स है ,इन्सान का क्या होगा ,मुकुल दवे "चातक"


हर मोड़ पर अजनबी  शख्स है ,इन्सान  का  क्या  होगा ,
वो   अपने  थे  जो  अन्जान बने ,एतबार का क्या  होगा ,

चंद    लम्होंके   लिए   शाखसे    पंछी    उडा    था    ही ! ,
हिस्सेमें  पेड़का वजूद रहा नहीं , मक़ाम  का  क्या होगा ,

अश्क    सिमटके   चहेरेकी   मुस्कानमें    ढल   रहे    हैं ,
जैसे शबनम हो  रोशन गुलपे , माह्ताब का  क्या  होगा ,

सुलगती   हर   शिकवा   खामोश   बन   के  रह  गई  हैं ,
जिगरमें  उभर  गई  खलिशें , अन्जाम  का  क्या  होगा ,

शम्माके   साथ   परिन्देके   सिलसिले   यूँ    ही  चलते ,
शम्मा   जलके   हुई   है  शोला , इजहार का  क्या होगा ,

मुकुल दवे "चातक"
 माह्ताब-चांद

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