19 May 2015

बेइतिन्हा उनकी महोब्बतममें डूबकर रह गया ,मुकुल दवे "चातक "


बेइतिन्हा   उनकी  महोब्बतमें  डूबकर  रह   गया ,
वक्तके  भँवरके  हाथोंमें  उनका  दामन  रह  गया ,

क्या   मायनेथे   रिश्तोके  आँखोमे  मै   रहता  था ,
वक्तकी   फितरतमें   बहकर   काजल   रह   गया ,

जख्म  उभरा ऐसाकी  उनकी  गली  तक  आ  गए ,
मसीहा लोग बने इन्तिहा का धुआँ बढ़कर रह गया ,

वक्त  ठहरा  नहीँ  किसीके  इन्तजारके  मोड़   पर ,
हर  मोड़पे  इश्क  दिवानगीमें आके बेबस रह गया ,

इश्ककी खुशबुका एहसास थोड़ा जाया कर दीजिये ,
इबादतसे  गुजरे  मेरे  घरसे उनका असर  रह गया ,

मुकुल दवे "चातक "
इन्तिहा-पराकाष्ठा // फितरत-स्वभाव





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