बेइतिन्हा उनकी महोब्बतमें डूबकर रह गया ,
वक्तके भँवरके हाथोंमें उनका दामन रह गया ,
क्या मायनेथे रिश्तोके आँखोमे मै रहता था ,
वक्तकी फितरतमें बहकर काजल रह गया ,
जख्म उभरा ऐसाकी उनकी गली तक आ गए ,
मसीहा लोग बने इन्तिहा का धुआँ बढ़कर रह गया ,
वक्त ठहरा नहीँ किसीके इन्तजारके मोड़ पर ,
हर मोड़पे इश्क दिवानगीमें आके बेबस रह गया ,
इश्ककी खुशबुका एहसास थोड़ा जाया कर दीजिये ,
इबादतसे गुजरे मेरे घरसे उनका असर रह गया ,
मुकुल दवे "चातक "
इन्तिहा-पराकाष्ठा // फितरत-स्वभाव
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