29 January 2016

कोई अँधेरा नहीं यहाँ कोई उजाला नहीं हुआ ,मुकुल दवे "चातक "


कोई       अँधेरा    नहीं    यहाँ    कोई    उजाला    नहीं      हुआ ,
चारो   ओर   गहरा   कोहरा   सुबह   का   उतारा    नहीं    हुआ ,

कच्ची     मिट्टी     के    जिस्म   पे     सरापा  में    चादर     थी ,
जिन्दगी  क्या  ले गई  फ़क़ीरोंसे,  खुदा का  नजारा  नहीं  हुआ ,

रात -दिन  मोम   बनकर   प्यारके   सांचे   में   पिघलता    रहा ,
जब  लहू  जम  गया  प्यार  के   हुनर  से  गुजारा   नहीं    हुआ ,

पतवारों   के  साथ    चलना    लंबे   पथ  पर  सूरज  छला  करें ,
कौन   सी   फिराक  में   था   अँधेरा  कभी  सितारा  नहीं   हुआ ,

कभी    तुम    किसी    मोड़   पे     मिलोगें      मुसाफिर    होके ,
आँखों में चरागों का कारवाँ  फिरभी रास्ते का इशारा  नहीं हुआ ,

मुकुल दवे "चातक "
कोहरा-धुम्मस //सरापा-सर से पाँव तक

27 January 2016

जाग उठी है फ़ितरते-फनकार मना लो मुझको ,मुकुल दवे "चातक"


जाग    उठी    है     फ़ितरते-फनकार     मना    लो    मुझको ,
पलकें   मूँदने     से  अच्छा ,  आँसुओ   में  समा  लो मुझको ,

तेरे    थरथराते     हुए      आँसू    मुझसे    नहीं   देखे    जाते ,
कुछ तलाश में नहीं मिलता आग़ोशे-खुदा में छुपा लो मुझको ,

झकजोर   दिया   है   मुझे   यादों   की   यह   ठंडी    मौसमने ,
कौन  बरसा  अधिक  आँसू  या  बादल ,सीने लगा लो मुझको ,

पतझड   में   मेरे    बहते    झरनों   में    तुमने    पैर   पखाले ,
बुझे  स्नेह  के  चिरागों  को ,चाहो  तो  फिर जला  लो मुझको ,

कितना    बिखर    गया    हूँ   मै     जिंदगी    की   रफ़्तार  में ,
वक्त  के  धागे  की  माला  में  परोके  गले  लगा  लो  मुझको

मुकुल दवे "चातक"

फ़ितरते-फनकार-कलाकार की प्रकृति//
आग़ोशे-खुदा-खुदा की गोद //

14 January 2016

महोब्बत करने वालेका दिल सजदेमें होते है ,मुकुल द्वे :चातक"


महोब्बत   करने    वालेका    दिल   सजदेमें   होते    है ,
खुदाकी    बंदगी  में   दिल    अश्को   से     भिगोते    है ,

उजाले   की   प्यास  में   अंधेरा   पसंद  नहीं   रात  को 
शब  की   महफ़िल  में   कई   जुगनू    दिल  जलाते  है ,

सांसो में  रची  है  साँस  के  धागो की   खुदाई   सौगात ,
जिस्म में  दीपक  की  लौ  को   साँसों से   पिघलाते   है ,

जिन   राहों   पे  वो  खड़े   है,  वहाँ  धूप  बहुत  कड़ी   है ,
चांदनी में उनकी दहलीज पे ,जुस्तजू के दिये सजाते है ,

कुछ  तो   है  खुदाई   में,  डूबने  गये  आ  गये   किनारे 
यूँ  दुआऐ  कुबुल  नहीं  हुई ,आँसुओ में खुदको डूबोते है ,

मुकुल द्वे :चातक"

6 January 2016

गुजर गई उम्र वक्त के तमाशा का गुजारा हुआ था ,मुकुल दवे "चातक"


गुजर  गई  उम्र  वक्त  के  तमाशा  का   गुजारा  हुआ   था ,
वरना   ताश के   पत्ते   दे   के   खुदा  का  इशारा  हुआ था ,

उम्रों की  इन्जार में  जो भी  इक्ठा   किया  था यह मुठी में ,
मिला वो खोया खो के मिला,वो जित  के भी  हारा हुआ था ,

बाजार  की  तासीर में  हुश्ने  के  लिबास  उतारे  हुए   देखा ,
सराफत में  डूबा  प्यासा भी न था प्यास का मारा  हुआ था ,

कारगर  हुई  मुहब्बत  और  नफरत  की  फिराकी  चाल में
दिल  की  सियासत में  तेरा हुनर और  भी  प्यारा हुआ  था ,

उन्हें हुश्ने शबाब को  इश्क के जज्जबात  में ढाल दिया था ,
अजनबी   की   हर   नजर  को  आईने  से  यारा   हुआ  था ,

मुकुल दवे "चातक"