खुदाकी बंदगी में दिल अश्को से भिगोते है ,
उजाले की प्यास में अंधेरा पसंद नहीं रात को
शब की महफ़िल में कई जुगनू दिल जलाते है ,
सांसो में रची है साँस के धागो की खुदाई सौगात ,
जिस्म में दीपक की लौ को साँसों से पिघलाते है ,
जिन राहों पे वो खड़े है, वहाँ धूप बहुत कड़ी है ,
चांदनी में उनकी दहलीज पे ,जुस्तजू के दिये सजाते है ,
कुछ तो है खुदाई में, डूबने गये आ गये किनारे
यूँ दुआऐ कुबुल नहीं हुई ,आँसुओ में खुदको डूबोते है ,
मुकुल द्वे :चातक"
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