जाग उठी है फ़ितरते-फनकार मना लो मुझको ,
पलकें मूँदने से अच्छा , आँसुओ में समा लो मुझको ,
तेरे थरथराते हुए आँसू मुझसे नहीं देखे जाते ,
कुछ तलाश में नहीं मिलता आग़ोशे-खुदा में छुपा लो मुझको ,
झकजोर दिया है मुझे यादों की यह ठंडी मौसमने ,
कौन बरसा अधिक आँसू या बादल ,सीने लगा लो मुझको ,
पतझड में मेरे बहते झरनों में तुमने पैर पखाले ,
बुझे स्नेह के चिरागों को ,चाहो तो फिर जला लो मुझको ,
कितना बिखर गया हूँ मै जिंदगी की रफ़्तार में ,
वक्त के धागे की माला में परोके गले लगा लो मुझको
मुकुल दवे "चातक"
फ़ितरते-फनकार-कलाकार की प्रकृति//
आग़ोशे-खुदा-खुदा की गोद //
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