गुजर गई उम्र वक्त के तमाशा का गुजारा हुआ था ,
वरना ताश के पत्ते दे के खुदा का इशारा हुआ था ,
उम्रों की इन्जार में जो भी इक्ठा किया था यह मुठी में ,
मिला वो खोया खो के मिला,वो जित के भी हारा हुआ था ,
बाजार की तासीर में हुश्ने के लिबास उतारे हुए देखा ,
सराफत में डूबा प्यासा भी न था प्यास का मारा हुआ था ,
कारगर हुई मुहब्बत और नफरत की फिराकी चाल में
दिल की सियासत में तेरा हुनर और भी प्यारा हुआ था ,
उन्हें हुश्ने शबाब को इश्क के जज्जबात में ढाल दिया था ,
अजनबी की हर नजर को आईने से यारा हुआ था ,
मुकुल दवे "चातक"
No comments:
Post a Comment