6 January 2016

गुजर गई उम्र वक्त के तमाशा का गुजारा हुआ था ,मुकुल दवे "चातक"


गुजर  गई  उम्र  वक्त  के  तमाशा  का   गुजारा  हुआ   था ,
वरना   ताश के   पत्ते   दे   के   खुदा  का  इशारा  हुआ था ,

उम्रों की  इन्जार में  जो भी  इक्ठा   किया  था यह मुठी में ,
मिला वो खोया खो के मिला,वो जित  के भी  हारा हुआ था ,

बाजार  की  तासीर में  हुश्ने  के  लिबास  उतारे  हुए   देखा ,
सराफत में  डूबा  प्यासा भी न था प्यास का मारा  हुआ था ,

कारगर  हुई  मुहब्बत  और  नफरत  की  फिराकी  चाल में
दिल  की  सियासत में  तेरा हुनर और  भी  प्यारा हुआ  था ,

उन्हें हुश्ने शबाब को  इश्क के जज्जबात  में ढाल दिया था ,
अजनबी   की   हर   नजर  को  आईने  से  यारा   हुआ  था ,

मुकुल दवे "चातक"

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