कोई धागेने साँस को पिरोया नहीं ,
बदन और रूह का रिश्ता पाया नहीं ,
जागता नहीं नीँद को किस्तों में बेचता है ,
बदन धो धो के मनका मैल धोया नहीं ,
जिन्दगी कम हो दर्जा फरिश्तो से बुलन्द था ,
एक भी सजदा खुदासे छलाया नहीं ,
रिश्ते के दोरमें एक धागा साँस और आसका ,
टूटने से पास- दूर , किसीने निभाया नहीं ,
वो पैग़म्बर, अवतार,देवता बनने निकला था ,
क्या क्या होकर लौटा ,"मैं "को मिटाया नहीं ,
मुकुल दवे "चातक"
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