5 December 2015

कोई धागेने साँस को पिरोया नहीं ,मुकुल दवे "चातक"


कोई     धागेने     साँस   को    पिरोया    नहीं ,
बदन    और    रूह  का   रिश्ता   पाया    नहीं ,

जागता  नहीं  नीँद  को  किस्तों में  बेचता  है ,
बदन   धो   धो   के  मनका  मैल  धोया  नहीं ,

जिन्दगी कम हो  दर्जा फरिश्तो से बुलन्द था ,
एक   भी    सजदा   खुदासे    छलाया     नहीं ,

रिश्ते के  दोरमें एक धागा साँस और आसका ,
टूटने   से  पास- दूर , किसीने  निभाया   नहीं ,

वो पैग़म्बर, अवतार,देवता बनने निकला था ,
क्या क्या होकर लौटा ,"मैं "को मिटाया  नहीं ,

मुकुल दवे "चातक"

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