रोशनी का न धुऍ का पता नहीं, जलाया कुछ और है ,
चिराग हों जब दिलमें फिर बुजाया कुछ और है ,
ऊँचे महलसे उसने झोंपड़ी का कद देख लिया ,
हाथों की लकीरों ने जज्बात खरीद के जुटाया कुछ और है ,
मेरी आँखों में ख़ामोशी से तुम ढूँढते हो क्या ,
जी भर के मेरे अश्कोमें, छिपाया कुछ और है ,
जिन्दगी की आगोश में कोई नहीं मिलता होशमें ,
पाले हुए सारे भरम बसाके दिखाया कुछ और है ,
मिट्टी का खिलौना बना कर कलाकार ने तलाशा है ,
तोडा कई बार उसने फिर बनाके मिटाया कुछ और है ,
मुकुल द्वे "चातक "
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