29 November 2015

यह कैसा दौर है उनके दिल में अब वो तल्खी नहीँ है ,मुकुल द्वे "चातक"


यह  कैसा  दौर  है  उनके  दिल में  अब  वो  तल्खी  नहीँ  है ,
रिश्ता   पुराना  है  पहेले   जैसी  वो  बात  आज भी  नहीँ  है  ,

साकी   तेरे   मयक़दा  में  तुम   जिसे  मयकशी  कहते   हो ,
सागर   जैसी  उनकी   निगाह   आगे  वो  तिश्नगी  नहीँ  है ,

ख्वाब जागती आँखों को दिखाने वाला जिस तरह मिलते है ,
पहले  कभी  मुहब्बत  की  थी  वो  आज  दिल्ल्गी  नहीँ   है  ,

मेरी    किस्मत  में    जीत  भी   हूबहू   हार  की  तरह   हुई ,
मगर  रात  दिन, शामो  सहर, हर  धडी  अजनबी   नहीँ  है ,

हौसला  इतना  है  की  तु   कहे   या  न  कहे मर्जी  है   तेरी ,
एक   हकीकत   बयाँ   है   पहेले  जैसी  शर्मिन्दगी  नहीँ  है ,

आज   मिट   रहा   हूँ  उसी  तरह,जिस तरह मिटा  रही थी,
सिलसिला अजीब है वो तमन्ना,मुराद की जिन्दगी नहीँ है ,

हम   खुद को   रुसवा  उनकी   मुहब्बत से  नही  कर  पाए ,
वार   करते   रहे   वो   फिरभी  उनकी  बंदगी थमी  नहीँ  है ,

मुकुल द्वे "चातक"

तल्खी-कड़वाहट//मयकशी-शराब पीना//तिश्नगी-प्यास ,

 

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