27 November 2015

खिलते है उल्फत में तेरे रुखसार गुलाब की तरह ,मुकुल दवे "चातक "


खिलते  है  उल्फत  में  तेरे रुखसार गुलाब  की तरह ,
उतरती    है    तिश्नगी    आज    शराब    की   तरह ,

मैं   तेरी    याद  में   यह   सोचकर   काँप  उठता  हूँ ,
पढ़  न  ले  तेरा  नाम  मेरे  चहेरे  पे किताब की तरह,

किस  तरह  याद  आ  के  तुम  मुझे आजमा  रही हो ,
जैसे  सचमुच  उतरतें  ख्वाब  मेरे  अजाब  की  तरह,

तुम  इतना  जुनूँ  न  दिखलाओं  की  पकड़ लूँ दामन ,
फिर  अगर  बहल  लूँ   गुद गुदा हो के आब  की तरह,

जाग उठती है फ़ितरते -फनकार, जब तुम झूमती हो ,
तुम  आ  जाओ  आग़ोशे-तसव्वुर में शबाब की तरह

मुकुल दवे "चातक "

रुखसार-गाल //तिश्नगी -प्यास//अजाब-गुनाह का ख्याल,
आब-बरसात //फ़ितरते -फनकार-कला की प्रकृति ,
आग़ोशे-तसव्वुर-कल्पना की  गोदमें



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