खिलते है उल्फत में तेरे रुखसार गुलाब की तरह ,
उतरती है तिश्नगी आज शराब की तरह ,
मैं तेरी याद में यह सोचकर काँप उठता हूँ ,
पढ़ न ले तेरा नाम मेरे चहेरे पे किताब की तरह,
किस तरह याद आ के तुम मुझे आजमा रही हो ,
जैसे सचमुच उतरतें ख्वाब मेरे अजाब की तरह,
तुम इतना जुनूँ न दिखलाओं की पकड़ लूँ दामन ,
फिर अगर बहल लूँ गुद गुदा हो के आब की तरह,
जाग उठती है फ़ितरते -फनकार, जब तुम झूमती हो ,
तुम आ जाओ आग़ोशे-तसव्वुर में शबाब की तरह
मुकुल दवे "चातक "
रुखसार-गाल //तिश्नगी -प्यास//अजाब-गुनाह का ख्याल,
आब-बरसात //फ़ितरते -फनकार-कला की प्रकृति ,
आग़ोशे-तसव्वुर-कल्पना की गोदमें
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