22 November 2015

तुम बिन जख्म भरा है ,मगर महकता लगता है ,मुकुल दवे "चातक"


तुम बिन जख्म  भरा  है , मगर  महकसा  लगता  है ,
सोया  है गम  फिर भी  वो  शराबका  नशा  लगता  है ,

दिलके  ख्वाब को  हम  बार  बार  सजाने  लगते   है ,
मसीहा बनके आये है वो, जिन्दगी आईना लगता है ,

शहर  जाके   देखो  अब   वह  आदमी में   सुकूँ   नहीं ,
झकझोरा आदमी बात उसने मोड़ दी, बेज़ुबाँ लगता है ,

आँधियाँ  में  भी  मुहब्बत   का   दीपक    जलता   है ,
 मजार आता है फूल चढ़ाने , मुहब्बत खुदा लगता है ,

सितम    भूलके   भी   हम    आपके   अब   हो  जाऐ ,
फिरभी    दिलके   घा  पे   मरहम    बयाँ   लगता   है ,

मुकुल दवे "चातक"
सुकूँ-चैन







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