चंद सिक्के पेट के लिए हवामे उछाले कई किरदारमें ,
छन्न छन्न छल्ली दिल हुआ बेजुबाँ बाजारमें ,
लूट सड़को पर ऐसी मची कौन यार - दुश्मन ,
भीड़ में भी तनहा है शहर कौन सी मंज़िल की रफ्तारमें ,
गिनते गिनते अँधेरा , रोते रोते कब उजाला हुआ ,
साहिल पहुँचे बैठने कश्तीमें,निकली उम्र ढूँढने पतवारमे ,
अहसास था मुझे वजूद मेरा दिया गुलाबमे होगा ,
आज दीखती है आँखों की चमक तेरे इजहारमें ,
कच्चे बरतन कब तक ढोया करे मायावी नगरीमें ,
कातिल भी मै हूँ कितने घा दीये कलम की तलवारमे ,
मुकुल द्वे "चातक "
साहिल -किनारा
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