18 November 2015

चंद सिक्के पेट के लिए हवामे उछाले कई किरदारमें ,मुकुल द्वे "चातक "


चंद   सिक्के   पेट के   लिए  हवामे उछाले कई  किरदारमें ,
छन्न    छन्न    छल्ली    दिल    हुआ    बेजुबाँ   बाजारमें ,

लूट     सड़को   पर    ऐसी    मची     कौन   यार -  दुश्मन ,
भीड़ में भी तनहा है  शहर कौन सी   मंज़िल की  रफ्तारमें ,

गिनते   गिनते   अँधेरा ,  रोते   रोते   कब   उजाला  हुआ  ,
साहिल पहुँचे  बैठने कश्तीमें,निकली उम्र ढूँढने पतवारमे ,

अहसास   था   मुझे   वजूद   मेरा   दिया   गुलाबमे  होगा ,
आज   दीखती   है   आँखों    की    चमक   तेरे   इजहारमें ,

कच्चे   बरतन   कब   तक   ढोया   करे  मायावी  नगरीमें ,
कातिल  भी  मै  हूँ  कितने  घा  दीये  कलम की तलवारमे ,

मुकुल द्वे "चातक "
साहिल -किनारा

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