दिल मेरा दीदार इस सलीके से सादगी देखते है ,
चेहरा नजर आए आँखों की शर्मिन्दगी देखते है
में हूँ किनारा के इस पार तु खड़ी है उस पार ,
दोनों साथ ,डूबे और जिस्मकी तिश्नगी देखते है
मुझे मेरी जिन्दगी कहाँ ले के पहुँच गई है ,
लोगों की जबानी और हमारी अनसुनी देखते है ,
वो चारागर भी है और साथ खंजर भी रखता है ,
मेरा मसअला अहले महोब्बत का है दीवानगी देखते है ,
दिल की बात इस तरह जबाँ से क्या निकल गई ,
मेरी मुहब्बत खुद को बेजार कर के बंदगी देखते है ,
मुकुल दवे "चातक"
दीदार-दर्शन //जिस्मकी तिश्नगी-बदन की प्यास ,
चारागर-उपचारक
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