26 December 2015

दिल मेरा दीदार इस सलीके से सादगी देखते है ,मुकुल दवे "चातक"


दिल  मेरा   दीदार  इस  सलीके  से सादगी  देखते   है ,
चेहरा    नजर  आए  आँखों  की  शर्मिन्दगी  देखते   है

में    हूँ     किनारा    के    इस  पार  तु खड़ी  है उस पार ,
दोनों   साथ ,डूबे  और  जिस्मकी   तिश्नगी  देखते  है

मुझे    मेरी    जिन्दगी    कहाँ   ले   के   पहुँच  गई   है ,
लोगों   की   जबानी  और  हमारी  अनसुनी  देखते   है ,

वो   चारागर   भी   है   और   साथ  खंजर भी  रखता है ,
मेरा मसअला अहले महोब्बत का है दीवानगी देखते है ,

दिल   की  बात  इस  तरह  जबाँ  से  क्या  निकल  गई ,
मेरी  मुहब्बत खुद  को  बेजार कर के  बंदगी  देखते  है ,

मुकुल दवे "चातक"

दीदार-दर्शन //जिस्मकी तिश्नगी-बदन की प्यास ,
चारागर-उपचारक

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