23 December 2015

दिलसे वो बोलता है दिलों के कानमें ताब होते है ,मुकुल द्वे :"चातक "


दिलसे  वो  बोलता  है  दिलों के  कानमें ताब होते  है ,
आँखों  से बात  करता  है  रुखसार  पे नकाब होते  है ,

हवा  रुख  बदलती है फिरभी परिंदा उड़ानों पे होते है
नसीहत  यह  है बेजबानों  के पर में  मकाम  होते  है ,

सरापा तू है बुजा बुजासा फिरभी दिलमें तपिश क्यों ,
जब  बुजती  नहीं  प्यास  सराबों  की, अजाब होते है ,

मंदिर  मजार  तक  का सफरमे  युँ  कुछ  भी  न  था ,
कहनेको  चले  थे  मेरे  साथ  शहरमें  बेज़बाँ  होते है ,

जिक्र किया था उनका बातों बातों में युँ ही मौसम से ,
मुझे  क्या  पता  इश्क को आजमाने से हबाब होते है ,

मुकुल द्वे :"चातक "

ताब-तेज //अजाब-दुःख //तपिश-जलन //पर-पंख
हबाब-बुलबुला //सरापा-सर से पैर तक//
सराबों-मृगतृष्णा

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