दिलसे वो बोलता है दिलों के कानमें ताब होते है ,
आँखों से बात करता है रुखसार पे नकाब होते है ,
हवा रुख बदलती है फिरभी परिंदा उड़ानों पे होते है
नसीहत यह है बेजबानों के पर में मकाम होते है ,
सरापा तू है बुजा बुजासा फिरभी दिलमें तपिश क्यों ,
जब बुजती नहीं प्यास सराबों की, अजाब होते है ,
मंदिर मजार तक का सफरमे युँ कुछ भी न था ,
कहनेको चले थे मेरे साथ शहरमें बेज़बाँ होते है ,
जिक्र किया था उनका बातों बातों में युँ ही मौसम से ,
मुझे क्या पता इश्क को आजमाने से हबाब होते है ,
मुकुल द्वे :"चातक "
ताब-तेज //अजाब-दुःख //तपिश-जलन //पर-पंख
हबाब-बुलबुला //सरापा-सर से पैर तक//
सराबों-मृगतृष्णा
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