18 December 2015


तुम  इतना  करीब भी  ना आओ ,सियासत का  भय  रहेता है ,
इतना    भी    दूर    ना   जाओ ,   बगावत  का  भय  रहेता  है ,

दिलको   मन्दिर   बनाके   , मसरूफ   रहे   थे  आप  के  लिए ,
बूत  जमा  देवताओ  का   था  ,   क़यामत का  भय रहेता   है ,

खूद    अपना    अक्स    बनूँ ,   हमसफ़र   आसाँ  नही   होता ,
शीशा  वोही  है  तस्वीर  बदलने से , हक़ीक़त का भय रहेता है ,

बढ़ता    जा   रहा    है    शहर  में   शोर  , शनासा   कोई   नहीं ,
सराबों  की  तिश्नगी   दिलोमेँ   है ,इशरत  का  भय   रहेता  है ,

जिन्दगी  में  एक  इन्सान की  मुलाकात ही गनीमत होती  है ,
कलकी किसे खबर ,थोड़ा साथ चलो रुखसत का भय रहेता  है ,

मुकुल द्वे "चातक"

सियासत-राजकारण//अक्स-प्रतिबिंब //शनासा-परिचित ,
इशरत-आनंद।सुख //सराबों-मृगतृष्णा//तिश्नगी-प्यास

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