तुम इतना करीब भी ना आओ ,सियासत का भय रहेता है ,
इतना भी दूर ना जाओ , बगावत का भय रहेता है ,
दिलको मन्दिर बनाके , मसरूफ रहे थे आप के लिए ,
बूत जमा देवताओ का था , क़यामत का भय रहेता है ,
खूद अपना अक्स बनूँ , हमसफ़र आसाँ नही होता ,
शीशा वोही है तस्वीर बदलने से , हक़ीक़त का भय रहेता है ,
बढ़ता जा रहा है शहर में शोर , शनासा कोई नहीं ,
सराबों की तिश्नगी दिलोमेँ है ,इशरत का भय रहेता है ,
जिन्दगी में एक इन्सान की मुलाकात ही गनीमत होती है ,
कलकी किसे खबर ,थोड़ा साथ चलो रुखसत का भय रहेता है ,
मुकुल द्वे "चातक"
सियासत-राजकारण//अक्स-प्रतिबिंब //शनासा-परिचित ,
इशरत-आनंद।सुख //सराबों-मृगतृष्णा//तिश्नगी-प्यास
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