हम तुजे कायम किताब की तरह पढ़ा करते है ,
सुन हमारी बंदगी में निगाह -ए-करम दुआ करते है ,
कभी लम्हों के आईने में अक्स खुद का देखता है ,
उसका अन्दाजे- बयाँ अपने आप को गिला करते है ,
अंजुमन में आँख चुराता है वो अपनी नजरसे ,
गिले शिकवे हुए फिरभी खलिश है पर्दा करते है ,
तेरी याद है या तसव्वुर यह तमाशा आँखों का है ,
जब होशमें आते है मंजर हमें रुला करते है ,
अदा उन जुल्फों की बनाते , बिगाड़ते और सँवारते है ,
कहीं पे वफ़ा,दोस्ती,ख़ुलूस के सिलसिले बयाँ करते है ,
मुकुल द्वे "चातक"
निगाह -ए-करम-कृपा दृष्टि//अक्स-प्रतिबिंब//
अंजुमन-सभा//तसव्वुर-कल्पना//खलिश-दर्द //
मंजर-दृश्य
सुन हमारी बंदगी में निगाह -ए-करम दुआ करते है ,
कभी लम्हों के आईने में अक्स खुद का देखता है ,
उसका अन्दाजे- बयाँ अपने आप को गिला करते है ,
अंजुमन में आँख चुराता है वो अपनी नजरसे ,
गिले शिकवे हुए फिरभी खलिश है पर्दा करते है ,
तेरी याद है या तसव्वुर यह तमाशा आँखों का है ,
जब होशमें आते है मंजर हमें रुला करते है ,
अदा उन जुल्फों की बनाते , बिगाड़ते और सँवारते है ,
कहीं पे वफ़ा,दोस्ती,ख़ुलूस के सिलसिले बयाँ करते है ,
मुकुल द्वे "चातक"
निगाह -ए-करम-कृपा दृष्टि//अक्स-प्रतिबिंब//
अंजुमन-सभा//तसव्वुर-कल्पना//खलिश-दर्द //
मंजर-दृश्य
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