14 December 2015

हम तुजे कायम किताब की तरह पढ़ा करते है ,मुकुल द्वे "चातक"

हम   तुजे   कायम   किताब  की   तरह  पढ़ा  करते है ,
सुन हमारी  बंदगी में  निगाह -ए-करम दुआ करते  है ,

कभी   लम्हों के  आईने  में  अक्स खुद का  देखता  है ,
उसका  अन्दाजे- बयाँ  अपने आप को गिला करते  है ,

अंजुमन  में  आँख   चुराता   है   वो   अपनी   नजरसे ,
गिले  शिकवे  हुए  फिरभी  खलिश  है  पर्दा  करते   है ,

तेरी  याद  है या  तसव्वुर  यह  तमाशा  आँखों का   है ,
जब   होशमें   आते   है   मंजर   हमें  रुला    करते   है ,

अदा उन जुल्फों की बनाते , बिगाड़ते और सँवारते  है ,
कहीं पे वफ़ा,दोस्ती,ख़ुलूस के सिलसिले बयाँ करते  है ,

मुकुल द्वे "चातक"

निगाह -ए-करम-कृपा दृष्टि//अक्स-प्रतिबिंब//
अंजुमन-सभा//तसव्वुर-कल्पना//खलिश-दर्द //
मंजर-दृश्य

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