11 December 2015

अपने घर में रहते हो अजनबी की तरह तुम हो कौन ,मुकुल द्वे "चातक"


अपने   घर   में   रहते   हो   अजनबी की   तरह  तुम  हो कौन ,
हारा  किससे  बहार -अन्दर के  आदमी की तरह तुम  हो कौन ,

पहन    रखा    है   मुखौटा    इसके   पीछे   क्या  है  पूछता  हूँ ,
मीरा ,  राधा के    ग्वाला की   बंसरी की   तरह  तुम  हो  कौन ,

मै    ने    अपनी    तनहाई यों   में   उसको  छुपा के  रखा  था ,
मुझे  सोचा  उतारा  है जहन में तिश्नगीकी तरह तुम हो कौन ,

जुकता  रहता  हूँ  यह समझ के कोई भी आईना शनासा होगा ,
मगर तुमने सलीके से मुझे रखा डायरी की तरह तुम हो कौन ,

मेरे   दिलमें   चाह   जगी   है  आँखों  की  तरह  पंख  खोल  दूँ ,
और  गोदमें  सर  रखु सजदा की बंदगी की तरह तुम हो कौन ,

मुकुल द्वे "चातक"

तिश्नगी-प्यास //शनासा-पहचान ने वाला

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