अपने घर में रहते हो अजनबी की तरह तुम हो कौन ,
हारा किससे बहार -अन्दर के आदमी की तरह तुम हो कौन ,
पहन रखा है मुखौटा इसके पीछे क्या है पूछता हूँ ,
मीरा , राधा के ग्वाला की बंसरी की तरह तुम हो कौन ,
मै ने अपनी तनहाई यों में उसको छुपा के रखा था ,
मुझे सोचा उतारा है जहन में तिश्नगीकी तरह तुम हो कौन ,
जुकता रहता हूँ यह समझ के कोई भी आईना शनासा होगा ,
मगर तुमने सलीके से मुझे रखा डायरी की तरह तुम हो कौन ,
मेरे दिलमें चाह जगी है आँखों की तरह पंख खोल दूँ ,
और गोदमें सर रखु सजदा की बंदगी की तरह तुम हो कौन ,
मुकुल द्वे "चातक"
तिश्नगी-प्यास //शनासा-पहचान ने वाला
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