24 October 2015

आँखों है समन्दर ,पलकों पर किनारा रखा हुआ है ,मुकुल दवे "चातक"


आँखों   है   समन्दर ,  पलकों पर   किनारा  रखा   हुआ   है ,
सैलाब में  डूबने नहीं दिया,चश्मेतर का इशारा रखा हुआ  है ,

यूँ  भले  मिल  गया  जिन्दगी की  राहमे  पसीना   मिट्टी  में ,
सहरा में  चलते ही   पानी   बचाकर,  गुजारा  रखा  हुआ  है ,

बेजलाए    चिरागने    दिलको    शायद   जलाके   रखा    है ,
,धूआँने    धूंधला  करके   कारवाँ का   साया  रखा   हुआ  है

आवाज   सिक्को की   सुनने,   भले   मुझे   टालते   रहे  हो ,
सवाल  निपटने  बजारमेँ   उछाल के  सँवारा  रखा  हुआ  है ,

दिलको  आईना  बनाके,  यूँ  ही   हम    सरेआम  घूमते  रहे ,
हर एक ने खुदका साया देखकर,आईना दुश्वारा रखा हुआ है,

मुकुल दवे "चातक"
चश्मेतर-अर्शु भरी आँखे /सैलाब- बाढ़ -

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