तुम्हारे घरका पता ढूँढने शहरकी धूपमें पैर जलाये हुए है ,
अपने दिलकी तरह इन्सानने बंध दरवाजे सजाये हुए है ,
न मिलने का सबब सोचके हो जाता हूँ कुछ उदास ,
फिरभी आनेके इन्तजारमेँ चौखटपे आस लगाये हुए है ,
आइना बनाया पथ्थरसे बदलके लिबास आईना दिखाते है ,
बड़े सलीकेसे जिन्दगीकी किताब पढ़ाके रुलाये हुए है ,
मैं अहसास हूँ तेरा चाहे आँख खोलो या नींदमें सो लो ,
चाहो वफ़ा करो या जफ़ा फिरभी मुझे दिलमें छुपाये हुए है ,
मैं ढूँढता रह गया कौनसा जवाब का सवाल गलत था ,
गुनाह से बढ़कर मिली सजा लिखे गये हिसाब दिखाये हुए है ,
मुकुल दवे "चातक "
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