10 October 2015

तेरा घरका पता ढूँढने शहरकी धूप में पैर जलाये हुए है ,मुकुल दवे "चातक "


तुम्हारे घरका  पता  ढूँढने  शहरकी  धूपमें  पैर  जलाये हुए  है ,
अपने  दिलकी  तरह  इन्सानने  बंध   दरवाजे  सजाये  हुए  है ,

न    मिलने    का    सबब   सोचके   हो  जाता  हूँ  कुछ  उदास ,
फिरभी   आनेके   इन्तजारमेँ   चौखटपे   आस  लगाये हुए  है ,

आइना  बनाया पथ्थरसे  बदलके  लिबास  आईना दिखाते  है ,
बड़े   सलीकेसे   जिन्दगीकी   किताब   पढ़ाके   रुलाये  हुए  है ,

मैं   अहसास   हूँ   तेरा   चाहे   आँख   खोलो  या नींदमें सो लो ,
चाहो  वफ़ा  करो  या जफ़ा  फिरभी मुझे दिलमें छुपाये  हुए  है ,

मैं   ढूँढता   रह   गया   कौनसा   जवाब  का सवाल  गलत  था ,
गुनाह से बढ़कर मिली सजा  लिखे  गये  हिसाब दिखाये हुए है ,


मुकुल दवे "चातक "

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