चलते, संभलते ठोकर है हर डगर खुदा मेरे साथ है ,
हार के बाद फिर बसाते घोसला दस्ते-दुआ मेरे साथ है ,
साथ चलते चलते राहमें मेरा हमराज बिछड़ गया ,
शीशा-ए-दिलमें उसकी धड़कन सदा मेरे साथ है ,
मेरे रग रगकी बंदिशमें चाहतका किसका दमाम है ,
पिघल जाता है मेरा दिल मोमकी तरहा धूआँ मेरे साथ है ,
ऐसा क्यूँ लगता निग़ाहों पढ़कर मेरी तक़दीर सँवार देगी
अरमान है मिल जाओ गले आक़र दुआ मेरे साथ है ,
आखिर मेरे मजारपे आये , सजदा करके चले गए ,
शम्मा वो प्यारकी रौशन करके गये वफ़ा मेरे साथ है ,
मुकुल दवे "चातक"
दस्ते-दुआ-दुआ का हाथ
No comments:
Post a Comment