3 October 2015

चलते,संभलते ठोकर है हर डगर खुदा मेरे साथ है ,मुकुल दवे "चातक"


चलते,  संभलते  ठोकर  है  हर  डगर  खुदा  मेरे  साथ   है ,
हार के  बाद  फिर  बसाते  घोसला दस्ते-दुआ मेरे साथ है ,

साथ   चलते   चलते   राहमें  मेरा  हमराज  बिछड़   गया ,
शीशा-ए-दिलमें    उसकी   धड़कन   सदा   मेरे   साथ   है ,

मेरे  रग   रगकी  बंदिशमें  चाहतका  किसका   दमाम  है ,
पिघल जाता है मेरा दिल मोमकी तरहा धूआँ मेरे साथ  है ,

ऐसा क्यूँ लगता निग़ाहों पढ़कर मेरी तक़दीर सँवार  देगी
अरमान  है  मिल  जाओ  गले  आक़र  दुआ  मेरे साथ  है ,

आखिर   मेरे  मजारपे   आये ,  सजदा   करके  चले  गए ,
शम्मा  वो  प्यारकी  रौशन  करके  गये वफ़ा मेरे साथ  है ,

मुकुल दवे "चातक"

दस्ते-दुआ-दुआ का हाथ

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