सजधजसे जब जब वो गुलशनसे गुजरते है ,
फ़स्ले-गुलके दामनमें प्यासे भँवरे सँवरते है ,
रुखसे महजबीं तुम नकाब जब जब उठाती हो
तेरी प्यास , रुसवाईमें जिन्दगी के सागर छलते है ,
कभी वो साकी , तबीब और अजनबी बनते है ,
रिश्ता क्या मेरा दुश्मन या दोस्तका क्या चाहते है ,
चिराग उम्मीदोंके मेरे दिलमें बार बार जलाते हो
चाँदका चहेरा रखते हो ,बादलकी तरह बदलते है ,
इश्क मजबूर सही "चातक "दिलके साथ चलता नहीं ,
नवाज़िशें रहेगी मिटाओ या सँवारो तुम्हे चाहते है
मुकुल दवे "चातक"
फ़स्ले-गुल-फूलो का मौसम //महजबीं-चन्द्रमुखी //
सागर-शराब का जाम //नवाज़िशें-कृपा
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