30 September 2015

सजधजसे जब जब वो गुलशनसे गुजरते है ,मुकुल दवे "चातक"


सजधजसे    जब    जब    वो   गुलशनसे  गुजरते  है ,
फ़स्ले-गुलके   दामनमें    प्यासे   भँवरे    सँवरते   है ,

रुखसे  महजबीं  तुम  नकाब  जब  जब  उठाती    हो
तेरी  प्यास , रुसवाईमें  जिन्दगी के सागर  छलते है ,

कभी   वो  साकी , तबीब  और  अजनबी    बनते    है ,
रिश्ता  क्या मेरा   दुश्मन  या दोस्तका क्या चाहते है ,

चिराग उम्मीदोंके  मेरे  दिलमें  बार  बार  जलाते  हो
चाँदका  चहेरा  रखते  हो ,बादलकी  तरह  बदलते  है  ,

इश्क मजबूर सही "चातक "दिलके साथ चलता नहीं ,
नवाज़िशें  रहेगी  मिटाओ  या सँवारो  तुम्हे चाहते है

मुकुल दवे "चातक"

फ़स्ले-गुल-फूलो का मौसम //महजबीं-चन्द्रमुखी //
सागर-शराब का जाम //नवाज़िशें-कृपा

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