समंदरको बाहुमें लेनेसे साजन किनारा नहीं मिलता ,
रुखसारपे बिखरी जुल्फके साएमें गुजारा नहीं मिलता ,
बहुत कड़ा है सफर उम्रभरका ,एक पलमे नहीं गुजरता ,
भूख प्यासकी दुनियामें इश्कका उम्रभर सहारा नहीँ मिलता ,
चाहत ,नफरत , जुर्म और गुनाहके मारे यह जहाँमें,
कोईभी आशियानामें चिराग़े-सहरका नजारा नहीं मिलता ,
जुस्तजू है घर बनानेकी मगर कितनी दीवारें उठेगी
उठके नहीं पहुँचे महलों तक साथ देने तुम्हारा नही मिलता ,
दिलमे "चातक" ईक आरजू-ऐ -दीवानगीकी लहरसी उठी है
मगर बेजुबान जिंदगीका राजदां ईशारा नही मिलता ,
मुकुल दवे "चातक"
रुखसार-गाल//चिराग़े-सहर-सुबह का चिराग //राजदां-भेदी
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