24 September 2015

समंदरको बाहुमें लेनेसे साजन किनारा नहीं मिलता ,मुकुल दवे "चातक"



समंदरको   बाहुमें   लेनेसे   साजन   किनारा   नहीं    मिलता ,
रुखसारपे   बिखरी   जुल्फके   साएमें   गुजारा  नहीं   मिलता ,

बहुत   कड़ा   है   सफर    उम्रभरका ,एक पलमे  नहीं  गुजरता ,
भूख प्यासकी दुनियामें इश्कका  उम्रभर सहारा  नहीँ  मिलता ,

चाहत  ,नफरत   , जुर्म    और    गुनाहके   मारे   यह    जहाँमें,
कोईभी   आशियानामें  चिराग़े-सहरका नजारा  नहीं   मिलता ,

जुस्तजू    है    घर    बनानेकी   मगर  कितनी   दीवारें  उठेगी
उठके नहीं पहुँचे महलों तक  साथ देने तुम्हारा  नही   मिलता ,

दिलमे  "चातक"  ईक आरजू-ऐ -दीवानगीकी लहरसी उठी है
मगर    बेजुबान  जिंदगीका   राजदां   ईशारा   नही   मिलता ,


मुकुल दवे "चातक"
रुखसार-गाल//चिराग़े-सहर-सुबह का चिराग //राजदां-भेदी

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