21 September 2015

पी गए मदिरा पीते पीते आदमी फ़साना हो जाता है ,मुकुल दवे "चातक"


पी   गए   मदिरा   पीते   पीते   आदमी  फ़साना  हो  जाता  है ,
 इंसाको  नशेमें बदलते     देखा  नहीं, बुतखाना   हो  जाता  है ,

रहम   है  खुदाका   मयके  दमसे  पिघलती  है   बोझल   रातें ,
आदमी  ही आदमी  नहीँ रहता हकीकतमें  आईना हो जाता है ,

शाम  ढलते   ही   पीते  है   चाहतका  एक  मीठा  दर्द  जगाने ,
जब  कोई  इश्कका  दम तोड़ता है  मयका पैमाना हो जाता है ,

तुमने अगर जुल्फ  लहराई होती सावनका  महीना आ जाता ,
पी  लेते  है  इस  बहाने , नशेमें   जीनेका  बहाना  हो जाता  है ,

अगर  तुमने  अपनी  सुरूर  आँखोंसे  सुराही  छलकाई   होती ,
इश  बहाने  समां  बांध  लेते  है दिया दर्द  बेगाना  हो जाता है

मुकुल दवे "चातक"
फ़साना-कहानी/बुतखाना-मंदिर/ मय-शराब/पैमाना-प्याला ,


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