18 September 2015

तू मेरे नफ़्स में हो फिरभी मुझे जलाया क्यों है ,मुकुल दवे "चातक"


तू    मेरे    नफ़्समें   हो   फिरभी    मुझे  जलाया  क्यों  है ,
में   सदियोंसे  धूआँ   हूँ   फिरभी   मुझे   सजाया  क्यों  है

एसा   क्यों   लगता   है    मेरे    सारे   मोहरे    पिट    गए ,
रगों पे  जमा   खून   उसे   उबालके   पिघलाया   क्यों   है ,

रूह  को  खीँचके  कालने  मेरे  जिस्मकी  खोल  उतार  दी ,
दुनियाने  चिराग जलाके अपने आपको समजाया क्यो है,

वो  शख्स  जिसको  आपने  चूमा और गलेसे लगाया  था ,
आज  दास्तानों  के दिलचस्म  मोड़  पर  सुलाया क्यों  है ,

"चातक" लोगोंने जिस्म और जॉन टटोल कर देख लिया ,
जिसने  मुझे  रिश्तोमें  पिरोयां  आज  बिखराया  क्यों  है ,

मुकुल दवे "चातक"
नफ़्स=साँस/ रूह=आत्मा

No comments:

Post a Comment