तू मेरे नफ़्समें हो फिरभी मुझे जलाया क्यों है ,
में सदियोंसे धूआँ हूँ फिरभी मुझे सजाया क्यों है
एसा क्यों लगता है मेरे सारे मोहरे पिट गए ,
रगों पे जमा खून उसे उबालके पिघलाया क्यों है ,
रूह को खीँचके कालने मेरे जिस्मकी खोल उतार दी ,
दुनियाने चिराग जलाके अपने आपको समजाया क्यो है,
वो शख्स जिसको आपने चूमा और गलेसे लगाया था ,
आज दास्तानों के दिलचस्म मोड़ पर सुलाया क्यों है ,
"चातक" लोगोंने जिस्म और जॉन टटोल कर देख लिया ,
जिसने मुझे रिश्तोमें पिरोयां आज बिखराया क्यों है ,
मुकुल दवे "चातक"
नफ़्स=साँस/ रूह=आत्मा
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