11 September 2015

जिक्र आपका अंजुमनमें शायरीकी तरह बारबार हुए है ,मुकुल दवे "चातक"


जिक्र आपका  अंजुमनमें  शायरीकी  तरह बारबार हुए है ,
इश कदर  तुम्हारे  इश्कमें  तसव्वुरके  अशआर   हुए   है ,

गुलोंकी    वादियोमे    आरजू    भरे    कांटोके   साये    है ,
उन्ही    सायेके    तले    तुमसे    फुलोंके    वार   हुए    है ,

मेरे   हाथोंकी   लकीरेमें   तेरा   नाम   चमकता   सुनासा ,
खुदाभी  बेरहम  नहीं  जुग्नू  भी  अँधेरेमें  निसार  हुए  है ,

तुझसे  बिछड़े  जैसे  चलता  है  साथ  तेरे शहेरका रास्ता ,
रंजिशें सही गुजरे तेरे कुचेसे यादका मंझर निखार हुए है ,

मेरी   बे-जूंबा   महोब्बतसे   भले   ही   हो आप   ग़ाफ़िल ,
होंटोंकी  आपकी गहरी मुस्कानमें प्यारका इकरार हुए है ,

मुकुल दवे "चातक"
अंजुमन-મહેફિલ  अशआर-શેર तसव्वुर-કલ્પના 
जुग्नू-આગિયા

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