24 April 2015

पल भरके लिए लगा की कोई अपना पुकारता हुआ होगा ,मुकुल दवे "चातक"


पल  भरके  लिए लगा  की  कोई  अपना  पुकारता हुआ  होगा ,
मगर   वो   अपना   नहीँ   था ,  आपको   धोखा   हुआ   होगा ,

सजा    मिली    है    मेरे   गुनाहसे   बढ़कर   वो   अहसास   है ,
मशहूर   खुदको   करने   मुझे  बाजारमें  उछाला  हुआ   होगा ,

इस    तालाबका   पानी   बदल   दो    वकत   बदल   गया   है ,
वो  मछलियाँको   किटियों ने चारा  बनाकर  खाया हुआ होगा

निकली  चीख  तो  उनके  घरकी  दहलीज  तक   ठहरी  होगी ,
शहर की  भीड़ भाड़  के  शोरसे  वो  खुदको  ढूँढता  हुआ  होगा ,

शमा पे परिन्दे जलनेसे रोशनीके उजाले कम नहीँ हुआ करते ,
शहरमें  मशाले  जली  हुई  है  बेवफाइका  हादसा   हुआ  होगा ,

भूख  से  सब्र  कर   धनी थरथरा ने से रोटियाँ  उछाल रहा   है ,
भूखेके  हाथमें  मशाल  है  धनी  ने  हंगामा  देखा   हुआ  होगा ,

मुकुल दवे "चातक"

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