26 February 2015

बहकते हुए साजकी आवाजसे कभी पूछा करो ,मुकुल दवे "चातक"


बहकते   हुए  साजकी   आवाजसे  कभी   पूछा  करो ,
दर्दे-गम  हुआ  है  वो  किसी दिलको बहलानेके लिए ,

रातमें  चाँद  चमका  है  कभी  चाँदनीसे   पूछा  करो ,
प्यासे  लोग  कितने  तरसे  तश्नगी  हसरतोके लिए ,

गुल  चमनमे  छेड़  हूआ है तड़पते पोंधोसे पूछा करो ,
तोहीन  वो  कितना  हुआ  गैरोके  जज्बातोके   लिए ,

नाता   तोडा   जबभी    वफाने   जफासे   पूछा   करो ,
बदनाम कितना हुआ वो  जमानेमें वफाइओके  लिए ,

हुश्नसे आगे ओर कुछभी  है चाँदके दागसे पूछा करो ,
तौसीफ   हुआ   है    उसकी  ठहरी  शीतलताके  लिए ,

मुकुल दवे "चातक"
तश्नगी-प्यास

No comments:

Post a Comment