12 January 2015

मेरी नजरोका नूरे-दिदार बिगड़े की वो फ़साने कर बैठे है ,मुकुल द्वे "चातक"


मेरी नजरोका नूरे-दिदार बिगड़े की वो फ़साने कर  बैठे है ,
की  वो अपना हाल खुदसे अपने आपसे बेगाने कर  बैठे है ,

यह  क्या  मंजर  है  की  उनकी निगाहे-खमसी हो  गई  है ,
सोचता   हूँ  हैरतसे  की  वो हाल  क्यूँ कतराने कर  बैठे है ,

किस्मत  सिर्फ  यासो-मसरत  के सिवा कुछ भी  ही  नहीं ,
मलाल  ही  ईस  बातका की  वो कितने ज़माने कर बैठे  है ,

बुजाये तो भी कैसे उनकी जलाई हुई दो तरफसे चिनगारी ,
बढ़ती  जा  रही  है आग  क्यूँ  मुझको  दिवाने  कर बैठे  है ,

कैसी  यह   कजा-ऐ-उल्फत  है , बदले  बदले  से  चहेरे  हैं
ख़ामोशी लबों की बता रही है की वो आशियाँने कर बैठे  है ,

मुकुल द्वे "चातक"

निगाहे-खमसी-नीची नजर //  यासो-मसरत-आशा -निराशा //
मलाल-दुःख/अफ़सोस //कजा- मोत


No comments:

Post a Comment