1 February 2016

दिये बूझ गये सारे शहर के, अपनी दहलीज पे दियाजलाया होगा ,मुकुल दवे 'चातक '


दिये   बूझ   गये   सारे  शहर   के,  अपनी   दहलीज पे दिया जलाया होगा ,
प्यार  और  नफरत  की  दुनिया  में  प्यार की  लौ  को उन्हें  सजाया होगा ,

रेश्मी   जुल्फों   बिखरके  मीराँ   के   मिजाज  में   वो   जोगन   बन    गई ,
सोचता  रह  गया  देर  तक ,   जाने  वाले  ने  इस  तरह  मुझे  पाया  होगा ,

क्या   तकसीम  है   डूबना  सिखाया  नाख़ुदा  ने    समझदारी   के    साथ ,
माना उसकी हसीन सजा होगी, थोड़ा सा  प्यार  देके   मुझे  उठाया  होगा,

कांपते   रह गये   होठ  जब  सिसकते   हाथ  उन्हें   मेरे  लबों  पे  लगाया ,
समझ न सका प्यार उसका,किस तलाशकी तमन्नामें मुझे मनाया होगा ,

देख लिया  तेरा  इन्साफ  तेरी वफ़ा को  वफ़ा, जफ़ा को जफ़ा कह न सके ,
कैसा दौर है  प्यासे  बैठे  रहे साकी , तुमने छलका के  मुझे  पिलाया होगा

मुकुल दवे 'चातक '

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