दिये बूझ गये सारे शहर के, अपनी दहलीज पे दिया जलाया होगा ,
प्यार और नफरत की दुनिया में प्यार की लौ को उन्हें सजाया होगा ,
रेश्मी जुल्फों बिखरके मीराँ के मिजाज में वो जोगन बन गई ,
सोचता रह गया देर तक , जाने वाले ने इस तरह मुझे पाया होगा ,
क्या तकसीम है डूबना सिखाया नाख़ुदा ने समझदारी के साथ ,
माना उसकी हसीन सजा होगी, थोड़ा सा प्यार देके मुझे उठाया होगा,
कांपते रह गये होठ जब सिसकते हाथ उन्हें मेरे लबों पे लगाया ,
समझ न सका प्यार उसका,किस तलाशकी तमन्नामें मुझे मनाया होगा ,
देख लिया तेरा इन्साफ तेरी वफ़ा को वफ़ा, जफ़ा को जफ़ा कह न सके ,
कैसा दौर है प्यासे बैठे रहे साकी , तुमने छलका के मुझे पिलाया होगा
मुकुल दवे 'चातक '
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