31 March 2015

दुआ मांगी पत्थरसे मगर दुआमे पत्थर नहीं देखा ,मुकुल द्वे "चातक"


दुआ   मांगी   पत्थरसे   मगर   दुआमें   पत्थर   नहीं   देखा ,
इबादत  की   है  तेरी  तेरे  जैसा  बेजूबाँ   उम्रभर  नहीं  देखा ,

कोई   दवा  या   इलाज  दुनियाके  गमे  दर्दका  नहीं   मिला
सजाते हो तुम धड़कने साजपे तेरे  जैसा चारागर नहीं  देखा ,

ख्वाहिशो   में   कभी   तेरे   शहेरकी  गलीसे  गुजरे   हुऐ   थे ,
लगता  है  ऐसा की  मुहब्बतमें कमीसी है तेरा घर नहीं देखा ,

वक्तके   हालातमें   तेरे   कुचेमें   दरदरसा  भटका  हुआ   हूँ ,
आजतक  तुमने मेरी  दिल्ल्गी  या  जख्मे जिगर नहीं  देखा ,

चाँद  सूरज, शाख  पत्तों  मौसम वक्तके  साथ  ढलने  में  है ,
खफा हूँ जाके बैठता हूँ मजार पर उनको पेशे नजर नहीं देखा ,

मुकुल द्वे "चातक"

चारागर =उपचारक / पेशे नजर=नजर के सामने





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