मैं समंदर ठहरावकी तरहा , तुम सरिता कलकल,
ऐसे बहावको देख , प्यारको कोई अंजाम ना दे ,
हर नफसमे हो तुम , ख्वाब ऐसे टूटने मत देना,
ऐसे मिलते रहेगें युगो तक , कोई मकाम ना दे,
निस्तब्ध लहर मेरी महोब्बतकी तल्ख हकीकत है ,
आती हो रुमज़ूम गोश -ए -तनहाईमेँ कोई नाम ना दे ,
अनगिनत भीड़ छोड़के रिन्द, किनारे -आगोशमें आते है ,
लड़खड़ाके बदनाम करते है,उल्फतको कोई इल्ज़ाम ना दे,
मुझे मिलनेसे पहले बहते बहते तेरी इबादत होती है ,
रोशन तुम कितने हो आते हो , कोई एहतराम ना दे ,
किनारे के गोदमे// एहतराम=सन्मान
मुकुल दवे "चातक"
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