इबादत और मेरी मुराद के दरमियाँ खुदा का चेहरा किताब सी रही ,
लोंग जो मिले मुझसा रहा , करम में ढूँढा खुदी से रोशनी सी रही ,
क्या कहूँ शहर के हर आदमी गूँगों की तरह कुछ नहीं कहता ,
हैरत है हर शख्स की आँखो में सराबों की धनक रची सी रही ,
क्या तमाशा है शीशे की इमारत में हर शख्स शीशे की तरह मिला ,
अक्सर टूटने के बहाने बहुत , हर जुल्म में जमीनें सजा देती रही ,
कहर में सुलगता आदमी मशाल की तरह बस्तियों में घूमता रहा ,
तीरगी में जलाके चल दिया ,शहर में चिरागों के धूआँ की जिंदगी सी रही,
बस कोई मसीहा लौट आये , ये आसके दिये चौखट पे जलाके रखे ,
कौन कातिल किसका सब के हाथ में खंजर, इन्तहा की तिश्नगी सी रही
मुकुल द्वे "चातक "
इबादत-पूजा//करम -दया//सराबों-मृगतृष्णा//कहर-प्रकोप//
इन्तहा-अंत//तिश्नगी-प्यास//तीरगी-अंधकार ,
लोंग जो मिले मुझसा रहा , करम में ढूँढा खुदी से रोशनी सी रही ,
क्या कहूँ शहर के हर आदमी गूँगों की तरह कुछ नहीं कहता ,
हैरत है हर शख्स की आँखो में सराबों की धनक रची सी रही ,
क्या तमाशा है शीशे की इमारत में हर शख्स शीशे की तरह मिला ,
अक्सर टूटने के बहाने बहुत , हर जुल्म में जमीनें सजा देती रही ,
कहर में सुलगता आदमी मशाल की तरह बस्तियों में घूमता रहा ,
तीरगी में जलाके चल दिया ,शहर में चिरागों के धूआँ की जिंदगी सी रही,
बस कोई मसीहा लौट आये , ये आसके दिये चौखट पे जलाके रखे ,
कौन कातिल किसका सब के हाथ में खंजर, इन्तहा की तिश्नगी सी रही
मुकुल द्वे "चातक "
इबादत-पूजा//करम -दया//सराबों-मृगतृष्णा//कहर-प्रकोप//
इन्तहा-अंत//तिश्नगी-प्यास//तीरगी-अंधकार ,
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