7 February 2016

सारी निगाहों से दूर एक दुनिया बसाई थी ,मुकुल द्वे "चातक'


सारी   निगाहों  से   दूर   एक   दुनिया   बसाई    थी ,
ना मेरी , ना तुम्हारी थी ,सिर्फ ख्वाबों में सजाई  थी ,

में  कभी  सोचता  हूँ  की  मुझे  तेरी  तलाश क्यों  है ,
घूमता रहा  मगर  तुझे  माँगना खैरात में मनाई थी ,

कहीं दो राहे पे जिंदगी है ,न जुस्तजू ,न कोई आरजू ,
ये  शख्स  मर चूका  है  फिरभी लाश क्यों जगाई थी ,

ये खेल सचमुच क्या राजा-वजीर-फौज प्यादा का है ,
मोहरा इसका चलता है जो चाल दौलत से चलाई थी ,

हम सचमुच जो जिंदगी ढूँढ़ते है अब कहीं भी नहीं है ,
अभी  गहरा सुकून  है  की तुझे  ख्वाबों में बसाई  थी

मुकुल द्वे "चातक'

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