15 February 2016

इक न इक दिन देंगे आप दस्तकें दर पे तरस की तरह ,मुकुल दवे "चातक "


इक   न   इक  दिन  देंगे आप दस्तकें दर पे तरस की तरह ,
हम  अश्क बन के गिरेगेँ आप की प्यास की लहर की तरह ,

जब    सामने   तू   है    पर्दे    को   चेहरे  पे  पड़ा  रहने    दे  ,
उठेगा   पर्दा   निगाह   होगी   सँवरती    सहर    की    तरह ,

मेरे    वजूद   के   आसपास    ये   कौन  है  जो  मिलता  है ,
तू  भी  हयात  है  किताब सा  आईना है  समन्दर की  तरह ,

आज  सरेराह  कोई चेहरा लगा के निकला, ढूँढ न  सका में ,
खुद को  पा  न  शका  तुझे ढूँढता रहा द्स्त नगर  की तरह ,

मिला  न  पता खुदा जाने आँखों  में क्या फैला था दूर तक ,
कोई नक्शे पा न देखा बुला रहा जिसे खुदा के दर  की तरह

मुकुल दवे "चातक "

द्स्त नगर-हाथ फैलाये हुए//हयात-जिंदगी//सहरसुबह
 ,


2 comments:

  1. બધા ને તમારી પુરા દિવસ ની પ્રતિક્રિયા આ મજેદાર વસ્તુ દ્વારા વ્યક્ત કરો...
    અહિયા ક્લિક કરો: http://tiny.cc/qq5f2y

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  2. સર તમે જે લખ્યું છે એ ખુબજ સુંદર છે પણ નીચે જે ઈમેજ મૂકી છે તે દેખાતી નથી તો એ ઈમેજ બદલાવી દેજો જેથી લોકો તેને જોઈ શકે.

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