13 February 2016

बदन जलके खाक हुआ ,रूह की जबाँ से पुकार के आजमायें हम ,मुकुल दवे "चातक"


बदन  जलके  खाक  हुआ , रूह  की  जबाँ  से पुकार के आजमायें  हम ,
वो मस्जिदो मंदिर में ढूँढ़ते  रहे,किस तरह इसका दर खट्खटायें  हम ,

हे  पीरे  मैकदा  आपकी  महफ़िल  में  मेरी  खामोशी  तकसीर  हो  गई ,
मस्जिद  मंदिर का  दर बन्द था ,किस दर पे जाके  खता गिनायें  हम ,

खाक  उड़ाने  बाद  मिल  जाऊँगा  मिट्टी  में  तो हो   जाऊंगा  मिट्टीका
सिर्फ  इसलिए  जागता  हूँ  जो  मिट्टी  से  जुदा  है उनको  जगायें  हम ,

तुम्हारे  दर  पे  सर  रखना  था  रख  दिया,  बन्दे पे  क्यों  इल्जाम  है ,
गर  खुदा  खुद  से  पर्दा  उठायें  तो,  दस्ते  दुआ से  नजर  उठायें  हम ,

हे   नाखुदा   तूफाँ   उठा   शांत  होनेके   बाद   सबसे  किनारे  हो  गये ,
जिंदगी की  आखिर  जहमत  उठाने  बाद , गुबारे कारवाँ दिखायें  हम

मुकुल दवे "चातक"

पीरे मैकदा-शराबखाना का बुजुर्ग//तकसीर-अपराध//
दस्ते दुआ-दुआ का हाथ //नाखुदा-माजी//गुबारे कारवाँ-कारवाँ-धूल

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