बदन जलके खाक हुआ , रूह की जबाँ से पुकार के आजमायें हम ,
वो मस्जिदो मंदिर में ढूँढ़ते रहे,किस तरह इसका दर खट्खटायें हम ,
हे पीरे मैकदा आपकी महफ़िल में मेरी खामोशी तकसीर हो गई ,
मस्जिद मंदिर का दर बन्द था ,किस दर पे जाके खता गिनायें हम ,
खाक उड़ाने बाद मिल जाऊँगा मिट्टी में तो हो जाऊंगा मिट्टीका
सिर्फ इसलिए जागता हूँ जो मिट्टी से जुदा है उनको जगायें हम ,
तुम्हारे दर पे सर रखना था रख दिया, बन्दे पे क्यों इल्जाम है ,
गर खुदा खुद से पर्दा उठायें तो, दस्ते दुआ से नजर उठायें हम ,
हे नाखुदा तूफाँ उठा शांत होनेके बाद सबसे किनारे हो गये ,
जिंदगी की आखिर जहमत उठाने बाद , गुबारे कारवाँ दिखायें हम
मुकुल दवे "चातक"
पीरे मैकदा-शराबखाना का बुजुर्ग//तकसीर-अपराध//
दस्ते दुआ-दुआ का हाथ //नाखुदा-माजी//गुबारे कारवाँ-कारवाँ-धूल
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