11 February 2016

सुबह का सूरज के चेहरा की चमकती रोशनी से उभरने दे मुझे ,मुकुल द्वे "चातक "


सुबह  का  सूरज  के  चेहरा  की  चमकती  रोशनी  से  उभरने दे मुझे ,
अँधेरा  बहुत  था  मगर  हुनर से सुबह का सुनेहरी रंग  भरने  दे मुझे ,

आज  ऐसा  क्या  है  की  तुम्हारे  शहर  का  मौसम बड़ा  सुहाना लगे ,
तेरी  खन  खन ,चूड़ियाँ की आवाज चुराके सराबों में बिखरने  दे मुझे ,

मायुस  तुम  ना  होना,  हँसी  ख़ुशी  से  बिछड़ना   है   बिछड़    जाना ,
वक्त  की  शाम  हो  जाये  उसके  पहले  तेरी आँखों में उतरने दे मुझे ,

मुसाफिर  हूँ  फिरभी  न  जाने  क्यूँ  लगता है की जिंदगी थम गई हो ,
ढूढता  फिरता  रहँता   हूँ  खुदा की  छबि  में  फिरभी  पुकारने  दे मुझे ,

कैसा दौर है जहर पी चूका हूँ फिरभी जिंदगी की दुआ में तेरी असर हो ,
कहाँ था तुझे  दूर  जा के ,दुआएँ मुझे न दो,सजाओं में गुजरने दे मुझे

मुकुल द्वे "चातक "

सराबों-मृगतृष्णा

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